( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )
झूठी मायामों भूला ।
आखरी खावेगा झोला ॥ टेक ॥
देह-सौख्यको साच समझकर ,
विषयनके सँग डोला ।
अंतकाल फिर पछतावेगा ,
जमघर जात अकेला ॥ १ ॥ '
मेरा मेरा ' कहते कहते ,
धन औरोंने घुला ।
यह न हुआ फिर वह न हुआ तो ,
झटके खावे खूला ॥ २ ॥
सच्चा मारग छोड दिया और ,
मृगजलमें क्यों भूला ?
मानवजन्म गमाया बंदे !
फेर मिले नहि मेला ॥ ३ ॥
कहता तुकड्या दास गुरूका ,
भजले ' हरि ' की माला ।
तर जावेगा भवसागरमें ,
धर यह पथ निराला ॥ ४ ॥
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